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नागार्जुन की याद में ......

नागार्जुन की याद में ......

फिर कोई कलीमुद्दीन
आज कालिचरण बन गया
अब रिक्शाॅ नहीं चलाता वह
रिक्शाॅ चलाना कब का बंद कर दिया
थका नहीं है वह
ना ही उसने इनकार किया
जिम्मेदारियाँ निभाने से
चोटी रखने के बाद भी
त्रिपुंड लगाने के बाद भी
गेरूए वस्र परिधान करता था फिर भी
रूद्राक्ष की माला गले में थी फिर भी
पहचान लिया गया प्रेम प्रकाश को
वह हिंदू नहीं मुसलमान है
नाम बदलकर धंदा चला रहा है
रिस्शा चलानेवाले 
कई हिंदुओं ने पोल खोल दी उसकी
अपने हिंदू होने का हक अदा किया
वरना धर्म भ्रष्ट होता
तमाम हिंदू ग्राहकों का

अब उसकी झोपडी से निकलने वाले
धूवें से वातावरण खराब नहीं होता
चुल्हा आक्सर ठंडा रहने लगा है झोपडी में
बच्चे भूख के मारे भिलखने लगे हैं
फटे पुराने चिथडों में से
बीबी की जवानी चमक रही है
बूढे बाप की बीमारी जोर मारने लगी है
ऐसे में वह चूप न बैठ सका
अपने किसी पहचानवाले की मदत से
सडक के किनारे 
खोमचे बेचने लगा
पहनावा वही था
नाम मात्र बदला था
प्रेम प्रकाश की जगह खुद को
कालिचरण बताता था

किसी को धोखा देना उद्देश्य नहीं था
किसी को भ्रष्ट करने की कामना नहीं थी
बस अपने बच्चों की भूख 
मिटाने की चाह थी
बीबी का तन ढकना चाहता था
बूढे बाप का इलाज करना चाहता था
कुछ दिन अच्छी गुजरान हुई
झोपडी के बाहर निकलता धुँआ
सुबह शाम नजर आने लगा

शायद किस्मत को मंजूर नहीं था
उसका, उसके बच्चों का रोटी खाना
पहचान लिया  गया वहाँ भी
कैसे गंवारा करते कट्टर हिंदू
एक गरीब मुसलमान
खुद को हिंदू बताकर
पेट भरे अपने परिवार का
बवाल खडा किया कट्टरपंथियोंने
केवल उसकी ही नहीं
तमाम मुसलमानों की दुकाने
जो कि हिंदू देवी देवताओं के
नाम से चलती थी
बंद करवाने की मांग की गई
आंदोलन चलाया
मल्टीमिडिया गरजने लगा
और फिर कलीमुद्दीन 
या कहो प्रेमप्रकाश 
उसकी झोपडी से
धूँवा निकलना बंद हो गया


डाॅ. मिलिंद साळवे

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3 Comments

kashish

29-Sep-2024 02:56 PM

Fabulous

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Arti khamborkar

21-Sep-2024 09:18 AM

fantastic

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madhura

14-Aug-2024 07:41 PM

V nice

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